योगदान देने वाला व्यक्ति

24 जुलाई 2014

Mohre

" ओ दीपू सुन ! अभी पड़ोस से शमा मासी आये और मुझे उलाहना दे कि मैंने उनका काम नही किया तो तुम कह देना के माँ बीमार थी तुम ही उनको मुश्किल से अस्तपताल लेकर गए थे
और कहना आपको अपने काम की पड़ी हैं . आपने कौन
सा खाना बना कर भेज दिया होतीऐसी हैं क्या दोस्ती "
रीना ने बेल बजाने के लिय सामने वाले फ्लैट की घंटी बजाने के लिय हाथ उठाया ही था कि सुमन की आवाज़ सुनाई दी। कितना अजीब होता जा रहा हैं ना आज स्त्रीया घर की परिवार की समाज की नजर में ऊँचा उठने के लिय बच्चो का इस्तेमाल मोहरो की तरह करती हैं घर परिवार में किसी को कुछ कहलवाना हो तो बच्चो को सीखा पढ़ा कर कहलवाया जाता हैं भूल जाती हैं कि कल यही बच्चे बड़े होकर विकृत सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेंगे बच्चो को उम्र के हिसाब से बात करने देनी चाहिए न की सहेलियों रिश्तेदारो को कुछ कहने के लिय उनका बेजा
इस्तेमाल किया जाना चाहिए
रीना ने वापिस सीढ़ियाँ उतारनी शुरू की क्या फायदा ऐसी महिला की तबियत पूछने जाने का जो शरीर से स्वस्थ हो भी जायेगी मन से उम्र भर अवस्थ ही रहेगी

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